सुशासन
2005 में बिहार की बागडोर संभालने के बाद श्री नीतीश कुमार से
उनकी प्राथमिकता पूछी गई तो उन्होंने कहा – गवर्नेंस, उनसे
उनकी दूसरी प्राथमिकता पूछी गई, तब भी उन्होंने जवाब दिया
– गवर्नेंस और तीसरी प्राथमिकता पूछे जाने पर भी उनका जवाब था
– गवर्नेंस। गवर्नेंस यानि सुशासन के प्रति ये थी उनकी प्रतिबद्धता, जो
तब से अब तक एक समान है। उनके शासन में लोगों ने उस सुशासन का
स्वाद चखा जिसकी परिभाषा वे भूल चुके थे। वे सचमुच भूल गए थे कि सरकार का
दायित्व क्या है, लोगों की सेवा क्या होती है, विकास किस चिड़िया का नाम है और
इच्छाशक्ति से किस तरह चमत्कार भी मुमकिन है। श्री नीतीश कुमार की सुशासन की
यात्रा वास्तव में 2005 में मुख्यमंत्री सचिवालय में रेमिंगटन की टूटी-फूटी टाईप मशीन से शुरू
करके आज ई-गवर्नेंस के लिए पुरस्कृत होने वाले बिहार की यात्रा है। आज बिहार सुशासन की अद्भुत बानगी है।